तेरे इश्क़ में मख्मूर हुआ में इस कदर
नींदो में आती हो तुम नज़र
कुछ पल के लिये बहक जाता हूँ मै
मुस्करा कर फिर सो जाता हूँ मैं
जीस जगह पर बनती है सूरत आँखों मई तुम्हारी
खो देता हूँ खुद को मैं
हटती नहीं वहाँ से नज़र हमारी
एक दौर था जब वक़्त नहीं कटता था मेरा
आजकल पता नहीं चलता
कब होती है शाम और कब सवेरा
काश तुमसे दिल लगाने की जीद ना करते
अगर हम तुमसे
बेपनाह इश्क़ ना करते
देखा है जब से नक्श तुम्हारा
खुदा कसम
तंगहाली में भी मस्त होता है गुजारा
लिखता हूँ जब में तुम्हे
लगता है सामने ही हो तुम
कलम हटती नहीं कागज से
स्याही हो जाती है ख़त्म
तेरे इश्क़ के मोहताज है हम
दुनिया कहती है
इश्कबाज है हम
सोचते सोचते में मुस्करा देता हूँ
कितने हसीन हो तुम
सब कुछ बुला देता हूँ
एक भी लब्ज निकलता ना जुबा से
लख्त-ए-जिगर काबू ना हुआ
इश्क़ तेरा मुझ पे इस तरह हावी हुआ
जाता हूँ जब आईने के सामने
निहारता हूँ ऐसे
जैसे तुम हो पास मे
तमन्ना है तुम्हे सपना नहीं हक़ीक़त बनाने की
तस्वीर में नहीं तक़दीर में बसाने की
No comments:
Post a Comment