डॉ. राहत इन्दोरी लाइन 4 शायरी कलेक्शन

अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं



आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो



जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए

दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में ख्यानत  हो जाए



सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें



गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम  क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं

फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं



कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते  हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं



हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं

मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं



जवानी  में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं

अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं



नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे

किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे



जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे

भुला दे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे



इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए

फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए




काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते, गजब करते हैं

आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं



ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही ले ले अगर आसान हो जाए

ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो  इंसान  हो जाए



रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं

उसकी याद आयी  हैं, सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं



लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना

में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना



जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे

तेरे बदन की लिखावट में उतार चढाव हैं
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे



सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान  रहे

ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे



तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो

मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो

फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापार करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो



उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब



जाके कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से

बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से



बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा

चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी  सरकार में आ जाएगा



नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं

जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं



लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

मोड़  होता हैं जवानी का संभलने  के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं



साँसों की सीडियों से उतर आयी जिंदगी
बुझते हुये दिये की तरह, जल रहे हैं हम

उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम



इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने  के लिए काफी हूँ

हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ

एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ


दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं

हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं



राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना

नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत”  से सुननी  हो तो थोड़ी सी पिला भी देना




इन्तेज़ामात  नए सिरे से संभाले जाये
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाये

मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाये



ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था

मेरा नसीब मेरे हाथ कट गये
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था



इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाये
मेरे “अल्लाह” , मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाये

घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ  देर मुझे नींद भी आने लग जाये

साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाये



दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाये

बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाये



फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए

भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए



यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान  पढ़ते हैं

यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं



इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा  मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया

जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया



कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया

अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया



मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो

लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो

बेस्ट ग़ज़ल कलेक्शन डॉ.राहत इन्दोरी

बेस्ट ग़ज़ल कलेक्शन डॉ राहत इन्दोरी👇👇



बुलाती है मगर जाने का नईं :-डॉ राहत इन्दोरी

बुलाती है मगर जाने का नईं 
ये दुनिया है इधर जाने का नईं,

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं,

सितारें नोच कर ले जाऊँगा
में खाली हाथ घर जाने का  नईं,

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं,

                    वो गर्दन नापता है नाप ले
                   मगर जालिम से डर जाने का नईं,




किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है:-डॉ राहत इन्दोरी

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अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है,

लगे की आग तो आएंगे घर कई जद्मे में,
यहाँ सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है,

हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है,
हमरे मुह में तुम्ही जबान थोड़ी है,

मै जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं है,
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है,

आज शिहिदे मसनद है कल नहीं होंगे,
किरायेदार है जाती मकान थोड़ी है,

सभी का खून सामिल इस मिट्टी में,
किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है!!








अब कहा ढूढने जावोगे हमारे कातिल:-डॉ राहत इन्दोरी

मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो,
आसमा लाये हो ले आओ जमी पर रख दो,


अब कहा ढूढने जावोगे हमारे कातिल,
आप तो क़त्ल का इल्जाम हमी पर रख दो,


उसने जिस ताख पर कुछ टूटे दिए रखे है,
चाँद तारो को भी ले जाके वही रख दो










 सारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी है

वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है,

कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है,

फूलों की ख़ुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं
ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारीहै,

हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैं
मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है,

 


अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है,

दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ
इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है,

कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है…!!




आशिकी इज्जत बिगाड़ देती है:-डॉ राहत इन्दोरी

सुबह की नई हवाओं कि सोभत बिगाड़ देती है,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है,

जो जुर्म करते है वह इतने बुरे नहीं होते,
सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है,

मिलना चाहा है इंसा को जब भी इंसा से,
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है,

हमारे पीर तकीमीर ने कहा था कभी,
मिया ये आशिकी इज्जत बिगाड़ देती है!!







रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं,

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं,

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं,

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं  मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं  तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं,

उसकी याद आई है  साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं…!!



इन्तेज़ामात  नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ,

मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं तेरे आँगन में उजाला जाएँ,

गम सलामत हैं तो पीते ही रहेंगे लेकिन
पहले मयखाने की हालात तो संभाली जाए,

खाली वक्तों में कहीं बैठ के रोलें यारों
फुरसतें हैं तो समंदर ही खंगाले जाए,

खाक में यु ना मिला ज़ब्त की तौहीन ना कर
ये वो आसूं हैं जो दुनिया को बहा ले जाएँ,

हम भी प्यासे हैं ये अहसास तो हो साकी को
खाली शीशे ही हवाओं में उछाले जाए,

आओ शहर में नए दोस्त बनाएं “राहत”
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जाए..!!






समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है,

ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है,

वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाजों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है,

ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है,

हम अपने बूढे चिरागों पे खूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है..!!



अंदर का ज़हर चूम लिया, धूल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए,

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही माँ के थे घुल के आ गए,

मस्जिद में दूर दूर कोई दुसरा न था
हम आज अपने आप से मिल जुल के आ गये,

नींदो से जंग होती रहेगी तमाम उम्र
आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए,

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखि थी पहली बार
आईने को मजे भी मुक़ाबिल के आ गए,

अनजाने साये फिरने लगे हैं इधर उधर
मौसम हमरे शहर में काबुल के आ गये..!!





सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान  रहे,

ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे,

वो शख्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता हैं
तुम उसको दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे,

मुझे ज़मीं की गहराइयों ने दबा लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे

अब अपने बिच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियाँ रहे,

सितारों की फसलें उगा ना सका कोई
मेरी ज़मीं पे कितने ही आसमान रहे,

वो एक सवाल है फिर उसका सामना होगा
दुआ करो की सलामत मेरी ज़बान रहे…!!


बेस्ट ग़ज़ल कलेक्शन डॉ राहत इन्दोरी

डॉ राहत इन्दोरी बेस्ट ग़ज़ल

डॉ राहत इन्दोरी बेस्ट ग़ज़ल :-


कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे,

जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे,

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का,
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे,

बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन,
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे,

पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज,
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे,

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे,



लोग हर मोड़ पे रुक रुक क्र सम्भलते क्यों है,

इतना डरते है तो फिर घर  निकलते क्यों है 

में ना जुगनू हूँ ना दिया हूँ ना कोई तारा हूँ ,

 रोशनी वाले मेरे  नाम  जलाते क्यों है ,

नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं वर्षों से

ख्वाब आके मेरी छत पे टहलते क्यों है 

मोड़ होता है जवानी का सम्भलने के लिये , 

लोग यही आके फिसलते क्यों है 



अंदर का ज़हर चूम लिया, धूल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए,

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही माँ के थे घुल के आ गए,

मस्जिद में दूर दूर कोई दुसरा न था
हम आज अपने आप से मिल जुल के आ गये,

नींदो से जंग होती रहेगी तमाम उम्र
आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए,

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखि थी पहली बार
आईने को मजे भी मुक़ाबिल के आ गए,

अनजाने साये फिरने लगे हैं इधर उधर
मौसम हमरे शहर में काबुल के आ गये..!!



Best gazal Of Dr. Rahat Indori

कसती तेरा नसीब ग़ज़ल- डॉ राहत इन्दोरी
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 कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
                                   
              इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया,

अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया,

रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना

सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया,

रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ
तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया,

इस बार एक और भी दीवार गिर गयी
बारिश ने मेरे घर को हवादार कर दिया,

बोल था सच तो ज़हर पिलाया गया मुझे
अच्छाइयों ने मुझे गुनहगार कर दिया,

दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया…. !!



रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं,

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं,

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं,

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं  मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं  तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं,

उसकी याद आई है  साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं…!!



दोस्ती जब किसी से की जाये,

 दुश्मनो की भी राये ली जाये,

 मौत कजेहर है फिज़ाओ में ,

अब खा जाके सांस ली जाये, 

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,

 ये नदी कैसे पार की जाये,

 मेरी ज़िन्दगी के जख्म भरने लगे,

 आज कोई भूल की जाये,

 बोतले खोल के पी बरसों , 

आज दिल खोल के पि जाये 

गुलज़ार मोटिवेशनल

 एक वक्त ऐसा था जब उसका नाम सुनते ही मुस्करा देते थे हम  एक वक्त ये है की उसका जिक्र होते ही हम बात बदल देते है  बहुत कम लोग है जो मेरे दिल ...